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| Ghazal by Rafi Badayuni |
غزل
یہ نہیں ہے کہ کہیں ہم کو ستمگر نہ ملے
فرق اِتنا ہے کہ ہر ہاتھ میں پتھر نہ ملے
اِتنا مایوس ہوں اُمید کے ہر وعدے سے
جیسے آواز دوں اور کوئی گھر پر نہ ملے
ایسا لگتا ہے کہ منزل کی طرف جاۓگا
راستہ ایسا کہ جس پر کوئی رہبر نہ ملے
میکدے میں وہ کوئی دور ہو دیکھا ہے یہی
رونقِ بزم وہی تھے جنھیں ساغر نہ ملے
مجھ کو منزل پہ پہنچنے کی خوشی کیا ہورفیع
روکنے والا اَگر راہ میں پتھر نہ ملے
رفیع بخش قادری رفیع بدایونی
ग़ज़ल
यह नहीं है कि कहीं हमको सितमगर न मिले
फ़र्क़ इतना है कि हर हाथ में पत्थर न मिले
इतना मायूस हूँ उम्मीद के हर वादे से
जैसे आवाज़ दूँ और कोई घर पर न मिले
ऐसा लगता है कि मंज़िल की तरफ़ जायेगा
रास्ता ऐसा कि जिस पर कोई रहबर न मिले
यह नहीं है कि कहीं हमको सितमगर न मिले
फ़र्क़ इतना है कि हर हाथ में पत्थर न मिले
इतना मायूस हूँ उम्मीद के हर वादे से
जैसे आवाज़ दूँ और कोई घर पर न मिले
ऐसा लगता है कि मंज़िल की तरफ़ जायेगा
रास्ता ऐसा कि जिस पर कोई रहबर न मिले
रफ़ी बख़्श क़ादिरी रफ़ी बदायूनी
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| Ghazal by Rafi Bakhsh Qadiri Rafi Badayuni |







